गुर्जर आन्दोलन जोरों पर है, हर ओर गुस्सा और नाराजगी है। बेंसला डटे है, लेकिन सवाल है की उन्हें आरक्षण मिल जाएगा। मिलाना भी चाहिए इससे मुझे न तो एतराज था और न अब है। लेकिन एक टीस अभी भी मन मैं चुभ रही है की उन्हें तो कुछ मिलना है लेकिन उनका क्या कसूर जो बिना किसी वजह के इस आन्दोलन का शिकार हो रहे है। आखिर उनका क्या कसूर है जो इस आन्दोलन के कारन अपने घर भी नहीं जा पा रहे है। आखिर गुर्जर इन लोगों को क्या जवाब देंगे। शायद उनके पास इसका भी जवाब हो, लेकिन गुर्जरों के आन्दोलन ने कुछ सवाल तो खड़े कर ही दिए हैं। पहला सवाल तो यही है की क्या इस तरह के आन्दोलन जायज है? क्या दूसरों को परेशान कर और राष्ट्रीय सम्प्पति को नुकसान पहुँचाकर ही आन्दोलन सफल होते है? क्या उससे पहले सरकारों को इसकी गूंज सुने नही देती, या यूं कहें की अनसुनी कर दी जाती है। सवाल जायज है या नही, मुझे नही मालूम लेकिन इतना जरूर जनता हूँ की उनकी परेशानी जायज है जो इस आन्दोलन मैं परेशान हो रहे है।
रस्ते रोके गए हैं, सड़कों पर आवागमन नहीं हो रहा है। नुकसान देश का हो रहा है। इसकी फिकर किसको। हमें, तुम्हें या फिर गुर्जरों को? अगर सही कहें तो किसी को नहीं। अगर होती तो इस तरह के आन्दोलनको हवा देने का काम कटाई नही करते। सरकारों को भी इस पर एक बार सोचना होगा। अगर नही सोच तो कल बेहतर होगा इस बात मैं संशय है। ऐसे मैं यही जरूरी है की हम सब मिल बैठकर इसका हल सोचें और अपनी उर्जा को देस के विकास मैं लगाएं।
शनिवार, 7 जून 2008
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2 टिप्पणियां:
"हम सब मिल बैठकर इसका हल सोचें और अपनी उर्जा को देश के विकास मैं लगाएं", इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि देश की उर्जा देश के काम में लगनी और लगानी चाहिए. पर गुर्जर आन्दोलन में 'हम' कहाँ हैं? आन्दोलन तो गुर्जर कर रहे हैं और कर रहे हैं अपने लिए और सरकार के ख़िलाफ़. 'हम' तो सिर्फ़ परेशान हो रहे हैं. भीड़ की गुंडागर्दी सरकार पर भारी पड़ रही है. यह देखकर हमें डर लग रहा है, क्या अपनी बात कहने और मनवाने के लिए अब 'भीड़ की गुंडागर्दी' जरूरी हो जायेगी?
suresh ji aap sahi kah rahe hai. lakin kisi ko to is bhed ke khilaph to aana hi padeaga aaj nahi to kal. agar koi nahi bola to har gali aur nukkad par log apana apana tambu lagaye khade honge.
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