कुछ ऐसा था एसमएस :
नई परीक्षा पॉलिसी :
सामान्य : सभी प्रश्नों के उत्तर अनिवार्य है।
ओबीसी : किसी एक प्रश्न का उत्तर अनिवार्य है।
एससी : प्रश्न पड़ना भर काफी है।
एसटी : परीक्षा मई आने के लिए धन्यवाद।
गुर्जर : दूसरों को परीक्षा मई आने देने के लिए धन्यवाद।
एक हंसी के साथ पूरा मन हिल गया, आखिर क्या हो रहा है। भले ही यह एसमएस मजाक मैं था लेकिन कहीं न कहीं हमारी व्यवस्था पर चोट जरूर कर रहा था। आखिर कहाँ जा रहा है समाज, अगर आरक्षण का यही हाल रहा तो फिर ये दिन आना भी कोई ज्यादा दूर नही है। मैं आरक्षण के खिलाफ नही हूँ, लेकिन खिलाफ हूँ उसे बांटने के सिस्टम से। क्या आरक्षण कोई खैरात मैं बताने वाली चेज नही है। न ही यह जबरदस्ती हासिल कराने वाली वस्तु ? लकिन कुछ का जवाब हाँ है तो फिर उन्हें कल की फिक्र करनी चाहिए की कल क्या होगा। हर कोई राह चलते आरक्षण मांगेगा। किसी को नौकरी मैं आरक्षण की जरुरत होगी तो किसी को कुछ और काम से। सम्भव है की आने वाले कल मैं बिना आरक्षण के कुछ सोचना ही बेमानी सा लगे। आखिर आरक्षण कोई खैरात नही है जो हर किसी को बाँट दिया जाए। सोचना होगा की इसे किसको दिया जाए और क्यों दिया जाए। क्या सिर्फ इस लिए देना सही होगा की वह जोर जबरदस्ती से मांग रहा है, या फिर उसे वाकई मैं जरूरत है। कहीं न कहीं हमें समाज के साथ बराबरी का नजरिया तो रखना ही होगा। आखिर सुनहरे कल की नीवं यहीं से तो रखी जायेगी। मैं तो यही कहूँगा की ये एसमएस सिर्फ मजाक बनकर ही रहे इससे ज्यादा कुछ हुआ तो नुकसान हम सब का होगा।आमीन!!!