सोमवार, 9 जून 2008

ये तो हद हो गई

कल रात अचानक से मारा मोबाइल बजा, उठा कर देखा तो उसमें एक एसमएस आया हुआ था। देखा तो परचित मित्र का ही था। एसमएस खोलकर देखा तो ओठों पर मुस्कान तैर गई। लेकिन दिल मैं एक दर्द उभर आया की कहीं ये मजाक कल की हकीकत तो नही। समझ मैं नही आया काफी देर तक उस एसमएस को लाकर सोचता रहा, जब नहीं रहा गया तो इसे सामने ले आया।
कुछ ऐसा था एसमएस :
नई परीक्षा पॉलिसी :
सामान्य : सभी प्रश्नों के उत्तर अनिवार्य है।
ओबीसी : किसी एक प्रश्न का उत्तर अनिवार्य है।
एससी : प्रश्न पड़ना भर काफी है।
एसटी : परीक्षा मई आने के लिए धन्यवाद।
गुर्जर : दूसरों को परीक्षा मई आने देने के लिए धन्यवाद।
एक हंसी के साथ पूरा मन हिल गया, आखिर क्या हो रहा है। भले ही यह एसमएस मजाक मैं था लेकिन कहीं न कहीं हमारी व्यवस्था पर चोट जरूर कर रहा था। आखिर कहाँ जा रहा है समाज, अगर आरक्षण का यही हाल रहा तो फिर ये दिन आना भी कोई ज्यादा दूर नही है। मैं आरक्षण के खिलाफ नही हूँ, लेकिन खिलाफ हूँ उसे बांटने के सिस्टम से। क्या आरक्षण कोई खैरात मैं बताने वाली चेज नही है। न ही यह जबरदस्ती हासिल कराने वाली वस्तु ? लकिन कुछ का जवाब हाँ है तो फिर उन्हें कल की फिक्र करनी चाहिए की कल क्या होगा। हर कोई राह चलते आरक्षण मांगेगा। किसी को नौकरी मैं आरक्षण की जरुरत होगी तो किसी को कुछ और काम से। सम्भव है की आने वाले कल मैं बिना आरक्षण के कुछ सोचना ही बेमानी सा लगे। आखिर आरक्षण कोई खैरात नही है जो हर किसी को बाँट दिया जाए। सोचना होगा की इसे किसको दिया जाए और क्यों दिया जाए। क्या सिर्फ इस लिए देना सही होगा की वह जोर जबरदस्ती से मांग रहा है, या फिर उसे वाकई मैं जरूरत है। कहीं न कहीं हमें समाज के साथ बराबरी का नजरिया तो रखना ही होगा। आखिर सुनहरे कल की नीवं यहीं से तो रखी जायेगी। मैं तो यही कहूँगा की ये एसमएस सिर्फ मजाक बनकर ही रहे इससे ज्यादा कुछ हुआ तो नुकसान हम सब का होगा।
आमीन!!!

शनिवार, 7 जून 2008

अब तों बंद करो!

गुर्जर आन्दोलन जोरों पर है, हर ओर गुस्सा और नाराजगी है। बेंसला डटे है, लेकिन सवाल है की उन्हें आरक्षण मिल जाएगा। मिलाना भी चाहिए इससे मुझे न तो एतराज था और न अब है। लेकिन एक टीस अभी भी मन मैं चुभ रही है की उन्हें तो कुछ मिलना है लेकिन उनका क्या कसूर जो बिना किसी वजह के इस आन्दोलन का शिकार हो रहे है। आखिर उनका क्या कसूर है जो इस आन्दोलन के कारन अपने घर भी नहीं जा पा रहे है। आखिर गुर्जर इन लोगों को क्या जवाब देंगे। शायद उनके पास इसका भी जवाब हो, लेकिन गुर्जरों के आन्दोलन ने कुछ सवाल तो खड़े कर ही दिए हैं। पहला सवाल तो यही है की क्या इस तरह के आन्दोलन जायज है? क्या दूसरों को परेशान कर और राष्ट्रीय सम्प्पति को नुकसान पहुँचाकर ही आन्दोलन सफल होते है? क्या उससे पहले सरकारों को इसकी गूंज सुने नही देती, या यूं कहें की अनसुनी कर दी जाती है। सवाल जायज है या नही, मुझे नही मालूम लेकिन इतना जरूर जनता हूँ की उनकी परेशानी जायज है जो इस आन्दोलन मैं परेशान हो रहे है।
रस्ते रोके गए हैं, सड़कों पर आवागमन नहीं हो रहा है। नुकसान देश का हो रहा है। इसकी फिकर किसको। हमें, तुम्हें या फिर गुर्जरों को? अगर सही कहें तो किसी को नहीं। अगर होती तो इस तरह के आन्दोलनको हवा देने का काम कटाई नही करते। सरकारों को भी इस पर एक बार सोचना होगा। अगर नही सोच तो कल बेहतर होगा इस बात मैं संशय है। ऐसे मैं यही जरूरी है की हम सब मिल बैठकर इसका हल सोचें और अपनी उर्जा को देस के विकास मैं लगाएं।