सोमवार, 4 अप्रैल 2011

ये पैसा क्या तुम्हारे बाप का है?

भारत ने वल्र्डकप क्या जीत लिया, केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकारों में खिलाडिय़ों को इनाम देने की होड़ सी लग गई है। हर कोई ज्यादा से ज्यादा देकर खुद को क्रिकेट का बड़ा शुभचिंतक साबित करने में जुटा हुआ है। यह बात और है कि इन सबके पीछे सिर्फ पब्लिसिटी से ज्यादा कुछ भी नहीं है। अब सवाल यह है कि इनाम बांटने के नाम पर जो सरकारी खजानों को राजनेता लुटा रहे हैं, वह बता सकते हैं कि यह पैसा क्या उनके बाप का है? आखिर कैसे आम आदमी के पैसे को बिना उसकी अनुमति के ऐसे बर्बाद किया जा सकता है? प्रणव मुखर्जी जी वैसे तो बड़े समझदार और शलीन नेताओं में शुमार होते हैं। भारत सरकार का वित्त मंत्रालय उनके हवाले है। लेकिन उन्होंने भी आईसीसी को टैक्स में ४५ करोड़ की छूट देते समय एक बार भी नहीं सोचा कि इस पैसे पर अधिकार किसका है। वित्तमंत्री होने का मतलब क्या खजाने का मालिक होना होता है? अगर नहीं तो फिर किस हैसियत से भारतीय खजाने को चूना लगाया जा रहा है। माननीय यहां तक भी नहीं रुके और इनामों की इस बरसात को भी टैक्स फ्री कर दिया। टैक्स का दायरा दस हजार रुपए तक बढ़ाने में तो पूरी सरकार को जोर आ जाता है, लेकिन खुद की वाहवाही के लिए खजाने को नुकसान पहुंचाते समय क्या सरकार और उसके नुमाइंदे एक बार भी सोचने को मजबूर होते हैं?
इनाम बांटने की इस भेड़चाल में तारीफ होनी चाहिए राजस्थान और उत्तर प्रदेश सरकार की। उन्होंने संयमित तौर पर इनाम देने की घोषणा की। गहलोत सरकार ने खिलाडिय़ों को राजस्थान भ्रमण का न्यौता दिया और उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने दोनों खिलाड़ी सुरेश रैना और पियूष चावला को कांशीराम खेल रत्न देने की बात कही। आखिर खेल को खेल ही रहने दिया जाए तो वह सबके लिए फायदेमंद है। अगर सरकारों को देना ही है तो इस पैसे को खेलों के ग्रासरूट पर विकास के लिए दे देते। खेलों की आधारभूत संरचनाओं को विकसित करने पर खर्च करते, शायद हर कोई इसकी तारीफ करता। आखिर आम आदमी का पैसा आम आदमी के पास ही तो आना चाहिए। कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन सरकार के पास था तो भ्रष्टाचार के माध्यम से खजाने को चूना लगाया गया। लेकिन वल्र्डकप का आयोजन तो सरकार के पास नहीं था, फिर भी खजाने को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई। आखिर कब सुधरेंगे भारत के यह खद्दरधारी!
दुआ करो कभी तो इस देश में कुछ सही होगा, आमीन!

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

चम्बल कि जय बोल.........


इन दिनों भिंड मै हूँ, एक ऐसा शहर जहाँ पर लोग घर का राशन खरीदने से पहले बन्दूक के लिए गोली खरीदना पसंद करते है। यहाँ के लोगों का मिजाज अलग है, या कह सकता हूँ कि ये उनका नहीं बल्कि चम्बल का मिजाज है। वो चम्बल जिसने कभी गुलामी नहीं स्वीकारी, जिसने कभी दस्ता का साथ नहीं दिया। बस चम्बल चली तो सिर्फ अपनी मर्जी से। जय हो........
किसी ने भिंड के बारे मै कहा है कि यहाँ पर लोग विरासत मै जमीन जायदाद छोड़ना पसंद नहीं करते, बल्कि जमीन जायदाद से आज के लिए गोली और बन्दूक लेना ज्यादा पसंद करते है। कुछ क्या काफी हद तक सही भी है। बन्दूक यहाँ का शौक है, जूनून है और पहला प्यार भी। यहाँ का बच्चा शायद तो इसी सपने को जीता है। कहते है कि चम्बल का पानी ही लोगों को बागी बनता है। अन्याय और गुलामी के खिलाफ चम्बल हमेशा बोली है। यहाँ अगर कोई बागी बना है तो सिर्फ अपने आधिकारों के लिए। चाहे फिर मलखान सिंह हो या फिर पुतलीबाई। हर कोई अपने सिद्धांतों के साथ आया और जिन्दगी को चम्बल के भरकों मै समर्पित कर दिया। लेकिन आज चम्बल खामोश है और दुखी भी, इसलिए नहीं कि चम्बल मै कोई नहीं है, बल्कि इसलिए कि चम्बलको आज भी सिर्फ डकेतों के लिए जाना जाता है, इस बीच लोग भूल जाते है कि इस देश की सीमाओं पर सपूतों की एक फ़ौज चम्बल के बेटों की है। आज चम्बल विकास कि और जा रही है। चम्बल का पानी अब अपने अधिकारों के लिए खौल नहीं रहा है। बल्कि कल कल कर बह रहा है। उसे उम्मीद है कि शायद काला कल बीत गया है और अब नया सवेरा नया इतिहास लेकर आया है। नयी उम्मीदों के साथ चम्बल शांत है, जैसे कि एक माँ प्रशव के बाद अपने बच्चे को देखकर उसमें अपना कल तलाशती है। कल कि कल्पना मै खुश भी होती है, लेकिन खामोश रहकर।......

सोमवार, 3 जनवरी 2011

क्या हाल है दिल का....

दिल का क्या हाल है कह नहीं सकता
मेरा क्यों बुरा हांल है कह नहीं सकता
तुम समझो मुझे भले ही दीवाना
पर मै खुद को दीवाना कह नहीं सकता
क्यों खामोश है नज़र ये मेरी
पास महबूब है फिर भी देख क्यों नहीं सकता
नज़रों का ये धोखा ही सही, क्या पता
पर मै तो दिल को दोखा दे नहीं सकता
तुम पास होकर भी क्यों इतने दूर हो
दूरी का एहसास क्या तुम्हें हो नहीं सकता।