सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

चम्बल कि जय बोल.........


इन दिनों भिंड मै हूँ, एक ऐसा शहर जहाँ पर लोग घर का राशन खरीदने से पहले बन्दूक के लिए गोली खरीदना पसंद करते है। यहाँ के लोगों का मिजाज अलग है, या कह सकता हूँ कि ये उनका नहीं बल्कि चम्बल का मिजाज है। वो चम्बल जिसने कभी गुलामी नहीं स्वीकारी, जिसने कभी दस्ता का साथ नहीं दिया। बस चम्बल चली तो सिर्फ अपनी मर्जी से। जय हो........
किसी ने भिंड के बारे मै कहा है कि यहाँ पर लोग विरासत मै जमीन जायदाद छोड़ना पसंद नहीं करते, बल्कि जमीन जायदाद से आज के लिए गोली और बन्दूक लेना ज्यादा पसंद करते है। कुछ क्या काफी हद तक सही भी है। बन्दूक यहाँ का शौक है, जूनून है और पहला प्यार भी। यहाँ का बच्चा शायद तो इसी सपने को जीता है। कहते है कि चम्बल का पानी ही लोगों को बागी बनता है। अन्याय और गुलामी के खिलाफ चम्बल हमेशा बोली है। यहाँ अगर कोई बागी बना है तो सिर्फ अपने आधिकारों के लिए। चाहे फिर मलखान सिंह हो या फिर पुतलीबाई। हर कोई अपने सिद्धांतों के साथ आया और जिन्दगी को चम्बल के भरकों मै समर्पित कर दिया। लेकिन आज चम्बल खामोश है और दुखी भी, इसलिए नहीं कि चम्बल मै कोई नहीं है, बल्कि इसलिए कि चम्बलको आज भी सिर्फ डकेतों के लिए जाना जाता है, इस बीच लोग भूल जाते है कि इस देश की सीमाओं पर सपूतों की एक फ़ौज चम्बल के बेटों की है। आज चम्बल विकास कि और जा रही है। चम्बल का पानी अब अपने अधिकारों के लिए खौल नहीं रहा है। बल्कि कल कल कर बह रहा है। उसे उम्मीद है कि शायद काला कल बीत गया है और अब नया सवेरा नया इतिहास लेकर आया है। नयी उम्मीदों के साथ चम्बल शांत है, जैसे कि एक माँ प्रशव के बाद अपने बच्चे को देखकर उसमें अपना कल तलाशती है। कल कि कल्पना मै खुश भी होती है, लेकिन खामोश रहकर।......