शनिवार, 12 सितंबर 2009

शरद जी बिजनेस क्लास चालू आहे!


केंद्र सरकार अपना खर्चा कम करने जा रही है। खर्चा कम कैसे होगा, इसी रूपरेखा की घोषणा खुद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने की। घोषणा बेहतर थी और भरोसेमंद भी। भरोसेमंद इसलिए कि घोषणा करते ही प्रणव दा ने दो मंत्रियों को फाइव स्टार होटल से निकालकर बाहर कर दिया। बेचारे फाइव स्टार की शानौ-शौकत छोडक़र विभागों के गेस्टहाउस में आ गए। सांसदों को होटल से लाकर आवंटित घरों में रहने को भेज दिया। कहीं न कहीं, एक बेहतर संकेत मिला। लेकिन यह घोषणा कुछ बेहतर अमल कर पाती, उससे पहले ही कुनबे में कलह हो गया है। मंत्रियों को प्रणव दा की नसीहत नागुजार गुजरी है। उन्हें यह पसंद नहीं आया है कि उनकी शानौ-शौकत में कोई खलल डाला जाए। मंत्रियों ने प्रधानमंत्री से साफ कह दिया कि वह हवाई सफर बिजनेस क्लास में ही करेंगे। भले ही प्रणव दा खर्चे कम करने की नसीहत देते रहें। बेचारे प्रधानमंत्री जी भी क्या करते, न हां की और न ही उन्होंने न की। बस मौन और बस सिर्फ मौन रह गए। मंत्रियों के खर्चों में कटौती का विरोध करने वालों में सबसे आगे मराठी मानुष शरद पवार रहे। उन्होंने साफ कह दिया कि वह बिजनेस क्लास में ही सफर कर सकते हैं। उन्हें इकनॉमी क्लास में सफर करने में परेशानी होती है। परेशानी भी बड़ी शानदार है, उन्होंने कहा कि उन्हें इकनॉमी क्लास में आम लोगों के बीच में बैठना पड़ेगा। साथ ही इकनॉमी क्लास की सीटें आरामदेह नहीं होती हैं। कुल मिलाकर उनका लब्बो-लुआब यह था कि वह आम लोगों की कैटेगरी में बैठकर यात्रा कैसे कर सकते हैं, जबकि वह केन्द्र सरकार के काबीना मंत्री हैं। बस यही इस देश की बदकिस्मती है। जिसे देखो वही खुद को वीआईपी समझने लगता है। वीआईपी समझने की इस होड़ में हर कोई आम आदमी को छोडक़र आगे निकल जाता है। अब अपने शरद पवार को आम आदमियों से दूरी बनाना लाजिमी भी है। कहीं, इकनॉमी क्लास में यात्रा करते समय कोई यह न पूछ बैठे कि यह खाद्यान्न की बढ़ती कीमतें कब थमेंगी? मंत्री जी शक्कर के दाम कब तक बढ़वाते रहेंगे? आम आदमी की थाली पर कब तक महंगाई का डंडा चलाते रहेंगे? आखिर मंत्री जी के पास इन सवालों का जवाब तो है नहीं, सो दूरी बनाना ही बेहतर। शरद पवार जानते हैं कि बिजनेस क्लास में तो कम से कम यह कोई पूछने वाला नहीं है। आखिर बिजनेस क्लास में वही लोग चलते हैं, जिन्हें फायदा पहुंचाने के लिए शरद पवार आए दिन मुंह फट बयान जारी कर देते हैं। शरद पवार शायद इस देश के पहले ऐसे कृषि मंत्री होंगे, जिन्होंने खाद्यान्नों के दाम बढऩे कि आए दिन भविष्यवाणी कर कालाबाजारियों को पनपने का मौका दिया। प्रणव दा के मनी मैनेजमेंट का विरोध करने वालों में अकेले शरद पवार ही नहीं हैं। बल्कि उनके कई भाई लोग भी शामिल हैं। कैबिनेट में शामिल इन भाई लोगों में फारुख अब्दुला से लेकर एमएम कृष्ण समेत तमाम लोग हैं। जिन्हें मंत्री बनने का मतलब ताम-झाम और शानौशौकत मालूम है। अब इन मंत्रियों को कौन समझाए कि अगर ऐश करना ही है तो देश के आम गरीब की गाढ़ी कमाई को क्यों बर्बाद कर रहे हैं। अपने घर से पैसे लाइए और ऐश करिए कोई नहीं रोकेगा। उम्मीद की जानी चाहिए थी कि प्रणव दा के इस मुद्दे पर विपक्ष भी उनका साथ देता। लेकिन विपक्ष भी खामोश हो गया, मालूम है कि जो प्रणव दा आज कर रहे हैं। वह उनके साथ भी लागू होगा। अब भई शरद पवार अकेले एक पार्टी में तो हैं नहीं। दूसरी पार्टियों में भी सर से लेकर पांव तक शरद पवार ही भरे हुए हैं। ऐसे में आम आदमी तो सिर्फ दुआ ही कर सकता है। आमीन!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!