मंगलवार, 8 जुलाई 2008

वो रात कभी न आए!

कहते है की मेहनत का फल मीठा होता है, शायद सही भी है। लेकिन इतनी मेहनत के बात कोई फल मीठा हो तो कोई ऐसा फल खाने से ही परहेज करेगा। ऐसा ही वाकया मेरे साथ गुजरा। कुल मिलकर दिल अब भी कहता है की ऐसी रात फिर न आए। उस रात की यादें कुछ खास हो गई हैं जो मै मिटाना नही चाहता, या यूँ कहें की मिटाने का दिल नही कर रहा है। दिल की क्या है, वो तो हर खासो आम को जगह दे देता है। घुमा फिराकर बात कहने का कोई मजा नही है। हफ्ते भर पहले की बात है, हुआ यह की मैं सुबह काम से जल्दी ऑफिस आ गया। ऐसे मै मुझे खाना खाने का भी ख्याल नही रहा। ऑफिस मै वही roj की चाय पी और लग गया तीन तेरह मैं, खाने की तो जैसे भूल ही गया। दिन बीता, शाम आई, इरादा कुछ मस्ती का था। तभी याद आया की आज एक शादी मै जाना है। रूम पर आया, कपडे बदले और बस जाने के लिए किसी का इंतजार कर ही रहा था की यह मित्र भी आ धमके। वे भी किसी महाशय की कार मै सवार होकर आए थे, मजबूरन उन महाशय को मुझे भी लिफ्ट तो देनी ही थी। बचारों ने न चाहते हुए भी मुझे अपने साथ बिठा लिया। समय मुस्किल से सवा नौ हुआ होगा। रस्ते मै था, तभी भोपाल ऑफिस के फ़ोन ने मेरे सुस्त पड़े मोबाइल को चिल्लाने के लिए मजबूर कर दिया। बेचारा मोबाइल रोता क्या न करता। मैंने तुरत फुरत मै फ़ोन उठाया, तब तक मुझे इस बात का पूरा अंदाजा हो चुका था की मेरी bend बजने वाली है। बताया गया, पी एम् टी का रिजल्ट आ गया है। शीर्ष दस मैं से फाइव ग्वालियर से है। सभी की फोटो साहित डिटेल भेजना है। फ़ोन कराने वाले महाशय ने बताया जल्दी करके देना पेज एक पर जायेगी। डाक एडिशन main भी जाना है, ये बौस का हुक्म है। बस इतना कहा की मेरे तो होश उड़ गए, कारन जिनके फोटो और डिटेल मुझे भेजने थे उनका एड्रेस ही मुझे मालूम था। और ग्वालियर main एक बात बिल्कुल साफ है की यहाँ पर एड्रेस से कोई नही मिलता। अब करता क्या, मेरी गाड़ी भी मेरे पास नही थी। अपने रिपोर्टर को फ़ोन लगाया, जो की घर जा चुका था। फ़ोन नोट रेचेबल आ रहा था। फोटोग्राफ़र को फ़ोन किया, उसे मैंने शादी वाली जगह पर ही बुलाया। उसने दस मिनट mai पहुँचने की बात कही। आया भी, वो दस मिनट दस घंटे लग rahe थे। हम दोनों वहां से निकले और खोज बीन सुरु की जो शायद आसन नही थी। फिर भी काम तो करना ही था। अनजान शहर मैं गलियों को खोज रहा था। .................................(to be continued)

4 टिप्‍पणियां:

तरूश्री शर्मा ने कहा…

मुझे यकीन है, काम तो तुमने पूरा करके दे ही दिया होगा। लेकिन बाबू, घूमने की क्या जरूरत थी? फोन नं तो पता लगाए जा सकते थे कुछ के.... फोन डायरेक्टरी या १९७ से। खैर, तुम तो कह ही चुके हो कि आगे क्या हुआ जानने के लिए इंतजार कीजिए अगली पोस्ट तक।

shailendra tiwari ने कहा…

didi phone number bachcho ke naam se nahi milte? dusari baat gwalior shahar kuch khas hai, yahan logon ko dondna bada majedar kaam hai. baaki wait karo?

Parivartan ने कहा…
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Parivartan ने कहा…

is ghatna se yeh saaf jahir hota hai ki aap kaam ke prati kitne jimmedar hai.aur aise hi logo ko jindagi mein safalta milti hai