रविवार, 17 मई 2009

मैं टीवी और अखबार वालों पर भरोसा नहीं करता

चौदह मई की शाम है। घड़ी में शाम के करीब सवा सात बजे होंगे। मैं अपने दो मित्रों के साथ दफ्तर में बैठा हुआ था। फोन की घंटी बजी, मोबाइल की स्क्रीन पर नजर डाली तो मेरे पत्रकार मित्र का फोन था। बड़े पत्रकार साथी हैं। हाल-चाल पूछने के बाद राजनैतिक हालत और हालात को लेकर चर्चा शुरू हुई। चर्चा कुछ बढ़ गई, हालांकि इस दौरान में यह भूल गया कि मैं किसी मित्र के साथ बैठा हुआ हूं। ग्वालियर के हालत से लेकर मध्यप्रदेश, राजस्थान और पूरे देश में घूमते हुए चर्चा दिल्ली के हालातों तक जा पहुंची। इस बीच टीवी चैनलों और अखबारों के एक्जिट पोल पर भी चर्चा होना स्वाभाविक थी, सो हुई भी। मैं अखबार और टीवी वालों के पोल से शायद इत्तेफाक नहीं रखता था सो अचानक ही मेरे मुंह से निकल गया कि मैं टीवी और अखबार वालों पर भरोसा नहीं करता। दूसरी ओर से जवाब के तौर पर सिर्फ ठहाके ही सुनाई दिए। शायद उनके पास भी शायद इसका कोई जवाब नहीं था। लेकिन इस बीच तक मुझे होश आ गया कि मेरे साथ कोई और भी है। जो अखबारी दुनिया से बेगाना है। झटपट मित्र से तो फोन पर बात खत्म की । सामने मुखातिब हुआ तो मेरे मित्र मुझे घूर रहे थे। उनकी आंखों में तैरते हुए सवाल मुझे साफ नजर आ रहे थे। उन्होंने भी झट से सवाल दे मारा, शैलेंद्र जी खुद अखबार वाले होकर दूसरे अखबार वालों पर भरोसा क्यों नहीं है? शायद मैं निरुत्तर था, लेकिन कुछ ठहराव के बाद मेरे मुंह से सिर्फ इतना ही निकला कि मैं भी कितना भरोसेमंद हूं? खबरों कि दौड़ती भागती जिंदगी में, हावी होते मैनेजमेंट और खबरों को पैदा करने वाली होड़ में कहां तक भरोसेमंद बना रहूंगा मैं? शायद मैं भरोसेमंद बना भी रहूं तो भी मुझ पर भरोसा कौन करेगा, जब पूरी बिरादरी से लोगों का भरोसा उठ जाएगा! बात शायद खत्म हो चुकी थी, लेकिन मेरे अंदर बात अभी भी खलबली मचा रही थी। मन में उलझन थी। बस यही सोच रहा था कि क्या हम अपने भरोसे को बरकरार रखने कि कोशिशों को जिन्दा रख रहे हैं या नहीं। ऐसे में अखबार और टीवी वालों के एक्जिट पोल कहाँ तक सही होंगे। वो भी उस हालत में जब यह पोल पूरी तरह से झूठ का पुलिंदा साबित होते हैं। आखिर झूठ साबित भी क्यों न हों, आख़िर कितने जमीनी होते हैं यह पोल? शायद हर कोई जानता है। कुछ हजार लोगों के सहारे पूरे देश कि राय बताने कि कोशिश करने वाले पोलों कि हकीकत जगजाहिर है। एसी कमरों में बैठकर पूरे देश की राय नहीं जानी जाती। राय जानने के लिए जमीन पर आकर धूल फांकनी पड़ती है। तब भी यह पूरी तरह से संभव नहीं है कि सही अनुमान हासिल किया जा सके। मैं सोच रहा था कि क्या वाकई मीडिया हाउस एक्जिट पोल के जरिए सच्ची तस्वीर पेश करने कि कोशिश करते हैं। या कहीं ऐसा तो नहीं, यह कुछ राजनैतिक दलों कि मक्खनबाजी की कोशिश भर हो। मतलब साफ है, तुम्हारी भी जय हो और हमारी भी जय हो। आखिर कुछ हजार लोगों से सवाल पूछकर एक करोड़ देशवासियों के बारे में कोई राय तय नहीं की जा सकती है? वो भी मेरी नजर में तो शायद नहीं। आम आदमी भी मेरी नजर से इत्तेफाक रखेगा, ऐसी मुझे पूरी उम्मीद है। पूरे चुनावी माहौल में मुझे भी कई इलाकों में काम करने का मौका मिला है। कई चुनावों को करीब से देखा भी है। लेकिन यह भी नहीं कह सकता की बहुत कुछ देखा है। देखने और सीखने की कोशिश तो जिंदगी की सतत प्रक्रिया है। लेकिन मैंने जो देखा उसी के आधार पर कह सकता हूं की मतदाता जागरुक हो रहा है। वो अपने दिल की बात यूं ही नहीं बता देता। कहता कुछ है और करता कुछ। वोट कहीं करता है और पसंद किसी और की बताता है। ऐसे में आम आदमी के दिल की बात सामने आएगी, उम्मीद कम ही है। यही कारण है की एक्जिट पोल गलत साबित होते आए हैं और एक बार फ़िर से गलत साबित हुए हैं। अब सवाल यह है, जब एक्जिट पोल गलत साबित ही होते हैं तो फिर यह अखबार और टीवी वाले कराते ही क्यों हैं? क्यों टीवी चैनल वाले कई-कई घंटों तक इन झूठे पोल के जरिए लोगों को उलझाने की कोशिशों में जुटे रहते हैं। इसकी भी अपनी वजहें हैं, आखिर अब टीवी पर दिखाने के लिए खबरें कहां हैं और अखबार वालों को टीवी की नकल करने से फुर्सत कब मिलती है। जरूरत है दोनों माध्यमों को फिर से सोचने की। कुछ नयापन लाने की और अपने विश्वास को बरकरार रखने की। अगर यही हाल रहा तो आज मैं, कल कोई और, और परसों कोई और कहेगा, मैं टीवी और अखबार वालों पर भरोसा नहीं करता।

2 टिप्‍पणियां:

Nasir Gauri ने कहा…

Janab shailendra tiwari ji, aap ki jo channels ke liye reaction vo vajib hai. aur channels ke editor ko is baat ka dhyaan rakhan chahiye ki vo baar- baar is taraha ki galtiya na kare. Meri upar vale se dua karta hu ki vo apko itni bulandiyo par le jaaye aur jahan ki vo sari khushiya de jiske aap haqdar hai.

Nasir Gauri Gwalior

shailendra tiwari ने कहा…

Nashir ji Bahut Bahut Dhanyawad.